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"होली की गुलाल हो रंगों की बहार हो" के साथ पूरे देश क्या विदेशों में भी होली की मची है धूम

"होली की गुलाल हो रंगों की बहार हो" के साथ पूरे देश क्या विदेशों में भी होली की मची है धूम

केएमबी संवाददाता

आज देश में होली का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन फिर चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर होली मनाई जाती है। होली रंगों और उमंगों का त्योहार है और इस दिन मस्ती करने और फगुआ गाने की परंपरा है। रंग वाली होली के दिन भूलकर भी पहने हुए वस्त्रों का दान किसी गरीब को न करें। मान्यता है कि होली के दिन ऐसे कपड़ों का दान करने से आपके घर की खुशहाली जा सकती है। होली के दिन लोहे या स्टील के बर्तनों का दान न करें अन्यथा आर्थिक नुकसान हो सकता है। यदि आप समर्थ हैं तो होलिका दहन के दिन किसी कन्या को सोने की कोई वस्तु दान कर सकते हैं। होली के दिन किसी भी रूप में पैसों का दान न करें। मान्यता के अनुसार होलिका दहन की रात में किसी को भी पैसे देने से आपके घर की आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। होली के दिन सफ़ेद चीज का दान नहीं करने से शुक्र ग्रह नाराज हो सकते हैं। इस दिन सफ़ेद चीजों का दान करने से चंद्र दोष भी लग सकता है। 

कामदेव की तपस्या और होली
शिवपुराण के अनुसार, हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तपस्या कर रहीं थीं और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र आदि देवताओं ने कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने भेजा। भगवान शिव की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव ने शिव पर अपने 'पुष्प' वाण से प्रहार किया था। उस वाण से शिव के मन में प्रेम और काम का संचार होने के कारण उनकी समाधि भंग हो गई।इससे क्रुद्ध होकर शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोल कामदेव को भस्म कर दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिवजी को पार्वती से विवाह के लिए राज़ी कर लिया। कामदेव की पत्नी रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान और शिवजी का पार्वती से विवाह का प्रस्ताव स्वीकार करने की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की तरह मनाया यह दिन फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रसंग के आधार पर काम की भावना को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक समय में श्री कृष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई। आज भी बरसाने और नंदगाव की लट्ठमार होली विश्व विख्यात है।
हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका दहन मुख्य रूप से भक्त प्रह्लाद की याद में किया जाता है। भक्त प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्मे थे परन्तु वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए  हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए। उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहन कर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी। होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। शक्ति पर भक्ति की जीत की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाने लगा। साथ में  रंगों का पर्व यह सन्देश देता है कि काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ रुपी दोषों को त्यागकर ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।
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