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प्रेम विवाह

प्रेम विवाह


मैं प्रेम विवाह को ग़लत नही मानता हूँ, प्रेम विवाह को ग़लत तब मानता हूं जब माता पिता की सहमति नही होती है। आज कल ट्रेंड सा चल पड़ा है कि करना प्रेम विवाह ही है फिर चाहे घर के लोग नाराज़ हो अथवा समाज के। ये एक दुखद स्थिति है यहाँ ग़लती उन माता पिता की भी होती है जो उनको इतनी स्वतंत्रता देते है, कुछ भी करने की छूट देते है उन पर से नियंत्रण हटा लेते है। जब कोई लड़का लड़की प्रेम विवाह करते है तो बदनामी दोनों के ही माता पिता की होती है। दोनों ही समाज, परिवार, सम्बंधी से एकदम कट से जाते है।समाज उनको हेय दृष्टि से देखने लगता है। सार्वजनिक स्थानों पर जाने से बचते है, घुट घुटकर जीने को मजबूर हो जाते है। समाज से परित्यकत हो जाते है। जिस माता पिता ने तुम्हें बीस वर्षों तक पढ़ाया, लिखाया, खिलाया, पाला पोषा उन्हें ही छोड़ते हुए तुम्हें तनिक शर्म नही आई? कैसे रह लेती हो तुम? तुम्हारी आत्मा तुम्हें धिक्कारती नही है? तुम्हें लेकर कितने सपने देखे होंगे? जिस माँ ने तुम्हें नौ महीने कोख में रखा उस पर भी दया नही आती है क्या? कैसे भूल सकती हो तुम उसे? पिता जिसने अपनी आवश्यकताओं से पूर्व तुम्हारी पूरी की है कैसे भूल सकते हो? जिसने सदैव तुम्हारा हित ही चाहा है उसकी प्रतिष्ठा को सरेआम कैसे उछाल सकती हो? 
 आए दिन ख़बर आती है कोई सूटकेस में पैक़ है तो कोई पैंतीस टुकड़ों में कटी हुई है। कितनों को तो वेश्यावृत्ति में ढकेल दिया जाता है। नब्बे प्रतिशत संख्या प्रेम विवाह करने वालों का ही होता है। किसी भी जाति धर्म में विवाह करो किंतु उसमें माता पिता की सहमति तो हो।एक बात तो तय है जो अपने माता पिता के अरमानों को कुचलकर तुम्हें अपना रहा है, इसकी कोई गारंटी नही की वो तुम्हें नही ठुकराएगा। जब इस कथित प्यार का बुखार उतरेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। तुम्हारा वापसी का रास्ता बंद हो चुका होगा जिसका परिणाम "सूटकेस" ही होगा। अभी भी समय है माता-पिता का सम्मान करो और सम्मानित जीवन जियो। प्रेम और वासना में फ़र्क़ करना सीखो। घर से भागने के पूर्व एक बार अपने माता की ओर अवश्य सोचना, हो सकता है तुम्हारा निर्णय बदल जाय।

राजन शर्मा 
मैनेजिंग एडिटर केएमबी न्यूज़ 
दिल्ली
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