“आर्यांश हॉस्पिटल : जहाँ डॉक्टर नहीं, किस्मत करती है ऑपरेशन”
सुल्तानपुर का आर्यांश हॉस्पिटल आजकल चर्चा में है। वजह इलाज नहीं! बल्कि इल्ज़ाम है। यहाँ मरीज इलाज कराने नहीं, बल्कि अज़माने आते हैं कि किस्मत साथ दे तो जिंदा लौटें, वरना बिल बनकर हमेशा के लिए फाइलों में दर्ज हो जाएं।
अस्पताल का बोर्ड कहता है “सेवा ही धर्म है” पर अंदर जाते ही लगता है कि धर्म नहीं, धंधा चल रहा है।
डॉक्टर कम, बिल मशीनें ज़्यादा हैं। हर सांस का रेट तय है जैसे ही ऑक्सीजन का सिलेंडर खुला, बिल का मीटर चालू।
संचालक बी.के. शर्मा खुद को स्वास्थ्य सेवा का “रॉबिनहुड” समझते हैं
बस फर्क इतना है कि रॉबिनहुड अमीरों से लूटकर गरीबों को देता था, और ये महाशय गरीबों से लूटकर अपने बैंक अकाउंट को भरते हैं।
आधा दर्जन शिकायतें गईं पर प्रशासन ऐसे सोया है जैसे हॉस्पिटल की दीवारों में स्लीपिंग पिल्स मिली हों।
शजर अब्बास जैसे लोग आवाज़ उठा-उठाकर थक चुके हैं, पर अधिकारी शायद सोच रहे हैं कि “जब तक कोई वायरल वीडियो न बने,और कोई बड़ी घटना न घटे तब तक सब ‘नॉर्मल’ है।”
*सरकारी डॉक्टरों का ‘पार्ट-टाइम पैशन’ आर्यांश हॉस्पिटल* दिन में सरकारी अस्पताल में ड्यूटी का ड्रामा और रात में आर्यांश में कमाई का कर्मयोग। यहाँ डॉक्टर नहीं, दोहरी भूमिका के कलाकार काम करते हैं
सुबह मरीजों के लिए “सरकारी सेवक” रात में मुनाफे के लिए “निजी व्यापारी”।
*हॉस्पिटल का इलाज भी यूनिक है!* अगर मरीज बच गया तो डॉक्टर “कौशल” का श्रेय लेते हैं, अगर मर गया तो कहा जाता है “भगवान की मर्जी थी”। बीच में बिल का पेमेंट मिस हो जाए, तो ICU का प्लग भी “भगवान भरोसे” हो जाता है।
ऐसे में आर्यांश हॉस्पिटल की हालत ऐसी है कि वहाँ मरीज का टेस्ट कम, और परिवार की सहनशक्ति का टेस्ट ज़्यादा होता है। *जितनी देर में एक मरीज ठीक होता है, उतने में तीन लोग कर्जदार बन जाते हैं।*
और सबसे बड़ी बात यह सब हो रहा है प्रशासन की छत्रछाया में, जैसे सरकार ने कह दिया हो “आप मौत बांटिए, हम चुप्पी ओढ़ लेंगे।”
आर्यांश हॉस्पिटल अब चिकित्सा का नहीं, मुनाफाखोरी का मंदिर बन चुका है। यहाँ इलाज नहीं होता आश्वासन का इंजेक्शन मिलता है। और जो नहीं बच पाता, उसे “बेहतर इलाज” का सर्टिफिकेट देकर विदा कर दिया जाता है।
*शेष अगले भाग में..* आर्यांश हॉस्पिटल की इनसाइड स्टोरी..! *सफेद कोट के पीछे का काला कारोबार!*
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