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परंपरा के नाम पर एमपी के छिंदवाड़ा में फिर खेला गया खूनी गोटमार मेले मे खूनी खेल

परंपरा के नाम पर एमपी के छिंदवाड़ा में फिर खेला गया खूनी गोटमार मेले मे खूनी खेल

छिंदवाड़ा के पांढुर्ना में परंपरा के नाम पर फिर खेला जाएगा खूनी खेल

विश्व प्रसिद्ध है जिले का गोटमार मेला 2 गांवों के लोग एक दूसरे पर बरसाते हैं पत्थर

केएमबी श्रावण कामडे

छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कई वर्षो पुरानी चली आ रही परंपरा के अनुसार पांढुर्णा में शनिवार 27 अगस्त को फिर विश्व प्रसिद्ध खूनी खेल गोटमार मेला में पत्थर बरसाया गया और खूनी खेल खेला गया। पिछले सैकड़ों बरसों से यह परंपरा चली आ रही है। परंपरा के अनुसार लोग एक दूसरे के ऊपर खूब पत्थर बरसाते हैं लेकिन प्रशासन भी परंपरा के आगे सिर्फ मूक दर्शक बना रहता है। हालांकि जिला प्रशासन हर साल कोशिश करता है कि लोग इस खूनी खेल को न खेले लेकिन परंपरा के नाम पर मौत का ये खूनी खेल निरंतर हर वर्ष जारी है। दरअसल छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना में जाम नदी पर एक मेले का आयोजन होता हैं जिसे गोटमार मेले के नाम से जाना जाता है। इस मेले के दौरान मेले की आराधना देवी मां चंडिका के पूजन उपरांत जाम नदी के बीचो-बीच पलाश का पेड़ और झंडा गाड़कर किया जाता है और फिर एक ओर से पांढुर्णा के तथा दूसरी और से सावरगावं के लोग एक दूसरे पर जोरो से पत्थर बरसाते हैं जिसमें कई लोग इस पत्थरबाजी में घायल भी होते हैं और अंत में जो नदी के बीच से झंडा प्राप्त करने में सफल रहता है तो उन्हें विजेता घोषित किया जाता है। इसी प्रकार खूनी खेल का अंत होता है किंतु यह पत्थरों को बरसाने का खेल आज तक बंद नही हुआ। छिंदवाड़ा जिले के प्रसिद्ध पांडुरना गोटमार मेले का इतिहास लगभग 300 साल पुराना बताया जाता है। पांढुर्णा के जाम नदी के दोनो और से लोगो के बीच खेले जाने वाले इस खूनी खेल के पीछे एक प्रेम कहानी जुड़ी हुई है। बताया जाता है कि पांढुर्णा का एक लड़का और नदी के दूसरी तरफ के गांव की लड़की से प्यार किया करता था। दोनो इस प्रेम प्रसंग को विवाह के बंधन में बदलने के लिए राजी थे किंतु कन्या पक्ष के लोग राजी नहीं हुए तो युवक ने अपनी प्रेमिका को जीवनसाथी बनाने के लिए सावरगांव से भगाकर पांडुरना लाने का प्रयत्न किया लेकिन रास्ते में स्थित जाम नदी को पार करते समय जब बात सावरगांव वालो को मालूम हुई तो उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझ कर लड़के पर पत्थरों की बौछार कर दी। जैसे ही वर पक्ष वालों को यह खबर लगी तो उन्होंने भी लड़के के बचाव के लिए पत्थर की बौछार करना शुरू कर दी।पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष के बीच पत्थरो की बौछारो से इन दोनों प्रेमियो की मृत्यु जाम नदी के बीच हो गई थी‌‌। इन दोनों प्रेमियो के शव को उठाकर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा अर्चना करने के बाद इनका अंतिम संस्कार किया गया। इसी घटना की याद में मां चंडीका की पूजा अर्चना कर गोटमार मेले को मनाया जाता है जो कई वर्षों से परंपरा अनुसार निरंतर चली आ रही है। छिंदवाड़ा के पांढुर्ना में खूनी खेल को रोकने के लिए 2008 में कलेक्टर ने प्रयास भी किया था और गोटमार स्थल पर ट्रकों से गेंद डाली गई थी लेकिन लोग गेंदों को अपने घर ले गए और पत्थरों से ही गोटमार खेला गया था। आक्रोशित होकर लोगों ने प्रशासन और पुलिस पर पथराव कर दिया था। इस अद्भुत गोटमार मेले के बारे में इतिहास संबंधित कोई भी विवरण तो उपलब्ध नहीं है। मराठी भाषा में बोलने वाले नागरिकों की इस क्षेत्र में बहुलता है और मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है। वाकई इस मेले में पत्थरबाजी की जाती है जिसमें हजारों लोग सूर्योदय से सूर्यास्त तक विपक्षी योद्धाओं पर पत्थर रूपी शास्त्रों की बौछार कर बड़ी शान से एक दूसरे को लहूलुहान करते हैं। इस एक दिवसीय अघोषित युद्ध में प्रति वर्ष अनगिनत लोग घायल हो जाते हैं तो कई अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। इस खूनी खेल को न खेलें लेकिन परंपरा के नाम पर मौत का यह खूनी खेल निरंतर जारी है। हर साल सैकड़ों लोग इस गोटमार मेले में बड़ी संख्या में घायल होते हैं। पिछले कई वर्षों में लगभग 14 लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद भी लोगो में परंपरा का बुखार चढ़ा ही हुआ है। और तो और मानवाधिकार आयोग भी इस खूनी खेल को बंद करने की अनुशंसा कर चुका है लेकिन परंपरा के नाम पर यह यह आज भी लगातार चालू है।
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