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रूठना

रूठना
मैं हो बेचैन जाता हूँ 
तुम्हारे रूठने भर से ।
भर आती आँख है मेरी 
तुम्हें बस याद करने से ।
तुम्हारा रूठना मुझको 
हमेशा ही रुलाता है ।
तुम्हारा मुस्कुराना तो 
नया जीवन दे जाता है ।।
            (२)
न देखूँ आँख भर जिस दिन 
उदासी छाई रहती है ।
मैं खोया सा पड़ा रहता 
मायूसी छाई रहती है ।।
निहारे चाँद को जैसे 
चक़ोरा मुग्ध होता है ।
हमारे हाथ में वैसे 
तुम्हारा चित्र होता है ।।
           (३)
हुई जो है ख़ता मुझसे 
चलो अब माफ़ कर दो तुम ।
तुम्हारा रूठना मुझको 
अजब सा दर्द देता है ।।
तुम्हीं तुम हो अधर पर नेत्र में 
दिल में और मन में ।
न कोई और आ सकता 
इरादे-इश्क़ महफ़िल में ।।
राजन शर्मा 
दिल्ली ।
(राजनीतिक गुरु श्री कुमार विश्वास के अन्दाज़ में पढ़े )
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