शासकीय महाविद्यालय कुरई के राष्ट्रीय सेवा योजना के विशेष शिविर में स्वयंसेवकों व उपस्थित ग्रामीणो ने जैविक खेती करने का संकल्प लिया

शासकीय महाविद्यालय कुरई के राष्ट्रीय सेवा योजना के विशेष शिविर में स्वयंसेवकों व उपस्थित ग्रामीणो ने जैविक खेती करने का संकल्प लिया

केएमबी अंजेलाल विश्वकर्मा

शासकीय महाविद्यालय कुरई की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के विशेष शिविर ग्राम पाटन में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए  आज दिनांक 25/03/2022 को बौद्धिक सत्र में जैविक खेती पर चर्चा हुई।जैविक खेती क्या, क्यों और कैसे पर व्याख्यान देने विषय विशेषज्ञ श्री प्रदीप राहंगडाले जैविक कृषि संस्थान लोहारा विकासखंड बरघाट ने अपनी उपस्थिति प्रदान की। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्राचार्य बीएस बघेल,  गणमान्य नागरिक लक्ष्मण साकरे, शिवप्रसाद अडम्बे, सीनियर रासेयो स्वयंसेवक अँजेलाल विश्वकर्मा, श्योर निशा फाउंडेशन स्वयंसेवक सुनील बिसेन, सहायक कार्यक्रम अधिकारी तीजेश्वरी पारधी, प्रो जयप्रकाश मेरावी,  की गरिमामयी उपस्थिति रही।  कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय सेवा योजना कार्यक्रम अधिकारी  प्रो गहरवार ने मुख्य प्रशिक्षक श्री प्रदीप राहंगडाले और उपस्थित स्टाफ के गुलदस्ते से स्वागत से की।  इस दौरान प्रशिक्षक श्री प्रदीप राहंगडाले ने सभी विद्यार्थियों व ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करते हुए जैविक खेती के लिए जागरूक किया। उन्होंने बताया कि जैविक खेती करने से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। इससे खेती की लागत में कमी आ जाती है।जैविक खेती के लिए आवश्यक सामग्री पोर्टेबल वर्मीबेड, ग्रीन सेड नेट, गोबर खाद, केंचुआ, मही, पत्ती,गौ मूत्र,नीम व करंज खली, फसलों के अवशेष की जरूरत पड़ती है। केंचुआ खाद को तैयार करने के लिए सबसे पहले छायादार जगह का चुनाव करें।इसके बाद आपको वर्मीबेड पर कचरे को बिछा देना है।वर्मीबेड का आकार 12-4-2 का होना चाहिए।अब चारे के ऊपर गौ पालन से निकलने वाला अपशिष्ट गोबर खाद , कचरा से भरकर पानी का छिड़काव करें। यह प्रक्रिया सुबह,शाम 3 दिन तक अपनानी चाहिए। इसके बाद आपको केंचुआ को इस खाद पर छोड़ देना है। एक वर्गफुट जगह में लगभग 100 केंचुआ को जरूर छोड़ें। इसके बाद 3 लीटर मही को 15 लीटर पानी मे घोल बनाकर गोबर , खाद कचरे में छिड़काव कर दें। अंत मे जुट वाली बोरी  से पूरे खाद को ढक दे। इस खाद पर समय समय पर सप्ताह में 2 बार पानी का छिड़काव 30 दिन तक करते रहे। अब पानी देना बंद कर दें। इस तरह से आप 45 दिनों के बाद केंचुआ खाद प्राप्त कर सकते है। यह व्याख्यान ज्ञानवर्द्धक, रोचक और प्रेरक रहा। स्वयंसेवकों व ग्रामीणों ने जैविक खेती से जुड़े प्रश्न श्री राहंगडाले से कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया।   इस प्रशिक्षण के अंतिम पड़ाव पर  कार्यक्रम अधिकारी प्रो पंकज गहरवार ने मुख्य प्रशिक्षक श्री प्रदीप राहंगडाले व उपस्थित ग्रामीणों का आभार प्रकट करते हुए इन पंक्तियों से किया- 
"एक न एक शम्मा अंधेरे में जलाए रखिये, 
सुबह होने को है, हौशला बनाये रखिये"।
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