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मौलाना मोहम्मद सलीम उल कादरी ने सुलतानपुर में तालीम व तरबियत का चराग रौशन किया:अकील अहमद कादरी

मौलाना मोहम्मद सलीम उल कादरी ने सुलतानपुर में तालीम व तरबियत का चराग रौशन किया:अकील 
अहमद कादरी 

केएमबी मंडल ब्यूरो कर्मराज द्विवेदी
सुल्तानपुर।हजरत अल्लामा मौलाना मोहम्मद सलीम उल कादरी संस्थापक जामिया अरबिया  सुल्तानपुर उन अज़ीम हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने तालीम व तरबियत को फैलाने, मानवता व भाई चारा को बढ़ावा देने,समाज सुधार में बड़ा योगदान किया है।
आप की पैदाइश :मौलाना मोहम्मद सलीम उल कादरी 22दिसम्बर 1922ई0 सुलतानपुर के एक छोठे से गॉव भुलकी में एक दीनदार घराने में पैदा हुए ।बचपन से ही आप दीनी मिजाज़ रखते थे, गॉव के ही एक मकतब मे शुरूआती तालीम ली सेकण्डरी के बाद पहले हिफ्ज़ करने की कोशिश की फिर दरसे निज़ामी जौनपुर से मुकम्मल किया और मशहूर इसलामी स्कालर ज़बरदस्त आलिमे दीन हज़रत काज़ी शमशुददीन जौनपुरी क़ानूने शरीअत के लेखक आप केखास उस्तादो में से एक हैं।
सुलतानपुर में आपकी खिदमात:तालीम मुकम्मल करने के बाद कौम की इसलाह की गरज़ से और तालीम को बढ़ावा देने के लिए सुलतानपुर तशरीफ लाए ।आपने सुल्तानपुर की जामा मस्जिद में इमामत की और वही से दीन की तबलीग मजहब का प्रचार और समाज सुधार का काम किया। जिस वक्त आप सुल्तानपुर में इमामत का काम अंजाम दे रहे थे उस वक्त सुल्तानपुर दीनी तालीम में बहुत पीछे था उसका अपना कोई बेहतरीन मदरसा और अच्छी संस्था ना थी। दुनियावी तालीम के लिए भी अल्पसंख्यक के लिए कोई खास संस्था ना थी आपने जामिया अरबिया खैराबाद सुल्तानपुर कायम करके शिक्षा और तालीम व तरबीयत का एक बेहतरीन  चिराग रोशन किया।
 फिर क्या था पूरे हिंदुस्तान से इल्म के प्यासे गिरोह दर गिरोह जामिया अरबिया में आकर अपने इल्मी प्यास बुझाने लगे और इस तरह से सुल्तानपुर की बंजर जमीन पर तालीम व तरबियत एक चमन आबाद हो गया। जब आपने देखा कि दुनियावी तालीम की भी कोई खास संस्था नहीं है या गरीब और नादार ,बेसहारा बच्चों के लिए तालीम लेना बहुत मुश्किल है तो आप ने सलीम  सेकेंडरी काइम किया।
 जामा मस्जिद से भी आपने समाज सुधार का जो काम अंजाम दिया वह अपनी मिसाल आप है। आपने अपनी कोशिश से पूरे सुल्तानपुर में इल्म व ओलमा की एक धमक जमाने में कामयाब रहे। गरीबों का ख्याल बीमारों की तीमारदारी मजदूर बेसहारों का सहारा बनकर आपने हिंदू मुस्लिम सब में अपना एक नाम पैदा कर लिया। आपकी कोशिश देखकर और धार्मिक और सामाजिक खिदमतो को देखकर रईसे उड़ीसा हुजूर मुजाहिद मिल्लत ने आपको खिलाफत व इजाजत से नवाजा। और सुल्तानपुर के खाकसार की बागडोर भी आपको सौंप दिया ।आप ने सुल्तानपुर के मुसलमानों को एक जा करने, उनके अंदर इस्लामी बेदारी पैदा करने, उनको तालीम से आरास्ता करने और सामाजिक बुराईयों से दूर रखने में बड़ा योगदान किया जिसके एहसान का बदला नहीं चुकाया जा सकता। अखलाक  भाईचारा इस कदर आपके अंदर भरा पड़ा था कि अपने तो अपने दूसरे लोग भी उसकाे तसलीम किये बगैर नहीं रह सकतेहैं। आपने अखलाक भाईचारा मिलन सारी मुजाहिद ए मिल्लत से सीखा था और हुजूर मुजाहिद ए मिल्लत इमाम अहमद रजा से इन खूबियो को वरासत में पाये थे।
50साल तक जामे मस्जिद चौक सुलतानपुर में इमाम व खतीब और साथ ही साथ काजी व मुफ्ती के तौर पर कौम की ख़िदमत की। मुसलमानों के बड़े बड़े मसलों को चुटकी में हल फर्माते ।आपके फैसले लोगों को लड़ने झगड़ने से बचाते यहां तक की पुलिस महकमा डीएम और एसपी भी आपके फैसले की कद्र करते थे और खास तौर से दीनी मसले में आप ही की राय को असल समझते हुए उसी के मुताबिक काम करते थे पीस मीटिंग में आपका बहुत ही नुमाया रोल रहा करता था जहां आईएएस अधिकारी भी थक हार जाते वहां आप हिंदू और मुस्लिम के त्योहारों को एक साथ पूर्ण तरीके से अमन और शांति के साथ करा देते थे रबी उल अव्वल दुर्गा पूजा ईद और बकरीद और दूसरे त्यौहार अपने-अपने ढंग से बगैर किसी दंगे के आसानी से पुर अमन तौर पर होता था जिसकी मिसाल आज भी पुराने लोग देते हैं
 आप जामिया अरबिया खैराबाद सलीम सेकेंडरी और दर्जनों मसाजिद के बानी व  संस्थापक और मतवाली रहे आपकी सरपरस्ती में सैकड़ों मकतबे चलते थे दीन और मजहब के लिहाज से और तालीम, तरबीयत के एतबार से आपने इमाम अहमद रजा  बरेलवी के नक्शे कदम को अपनाया। आपने सुन्नीयत के फरोग़ के लिए तनजीमे बनाई और इसलामी  उसूल व कानून को अपने किरदार व अमल से आम किया।और मज़हब व मसलक से कभी समझौता नहीं किया ।
आप का आखरी सफर:18 फ़रवरी 1998 में तकरीबन 76 साल की उमर पाकर ये अज़ीम जात इस मिटने वाली दुनियां को हमेशा के लिए छोड़ कर चल दी।जनाजा की नमाज़ फैजाबाद बाइपास पर अदा की गई ।हजरत कारी शब्बीर कादरी मिसबाही ने नमजे जनाज़ा पढाई, जिसमें ओलमा, दानिशवर हजरात के साथ कई हज़ार लोग शामिल हुए।
आज वह नहीं है मगर उनकी याद ,उनके कारनामें, उनका तरीका, उनकी कोशिश, लोगों के दरमियान उनको ज़िन्दा किये हुये है ।
रब ताला से दुआ है कि उनकी खिदमात को क़बूल फरमाये ।और हजरत मौलाना मुहम्मद सलीम साहब को जन्नत में आला मुक़ाम अता करे ।
अबरे रहमत तेरी मरकद पर गोहर बारी करे।
उमर भर शाने करीमी नाज़ बरदारी करे।।

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