"भरपेट खाना"

भरपेट खाना


केएमबी राजन शर्मा

   अनोख़ेलाल मीरपुर गाँव के ही ज़मींदार थे। अच्छी ख़ासी खेती थी सम्पन्न बड़े आदमी थे, जितने बड़े आदमी थे उतने ही बड़े कंजूस भी थे। एक एक धेला आँख की बरौनी से उठाते थे। उनका मानना था पूर्वजों के द्वारा छोड़ा हुआ धन आने वाली संतति के लिए सवाया करके देना चाहिए। उनका नौकर भगेलू था जोकि अपने पिता के मरने के बाद ही इनके यहाँ हरवाही करने लगा था।जब तक इसके पिता जीवित थे तब से अब तक हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद भी कभी कभी भरपेट भोजन नसीब नही हुआ था। ज़मींदार साहब काम तो पूरा लेते थे पर भोजन के रूप में रूखा सूखा चना चबैना खर्मिटाव ही देते थे।
   उस दिन भगेलू की बिटिया सरपुतिया बहुत ख़ुश थी कारण था कि ज़मींदार के यहाँ ब्रह्मभोज था। उसको लग रहा था आज भरपेट पूड़ी सब्ज़ी खाने को मिलेगी। सुबह से ही दोनों पति पत्नी काम में लगे हुए थे। कभी हलवाई को लकड़ी देना कभी कहार की मदद करना कभी बैलों को सानी पानी करना भागते भागते उनकी हालत ख़राब थी। भंडारा सकुशल सम्पन्न हुआ। अब बिना ज़मींदार की आज्ञा के भगेलू और उसका परिवार भोजन करता।आख़िर देर रात वे मेहमानों को विदा किया और भगेलू की तरफ़ हिक़ारत से देखा, कहाँ मर गया था ? मज़ूरी तो पूरी लोगे कहाँ मर गया था? काँपते हुए भगेलू ने कहा- महराज़ जूठी पत्तल फेंक रहा था।
  अनोख़ेलाल ने किसी को आवाज़ लगाई -लावा एका कुछ चना चबैना देई द्या। सुनते ही देंह तो सुलग गई उसकी सुबह से रात हो गई खट के दूनो परानी मर गए और अब ये चबैना दे रहा है किंतु मजबूरी थी। मिले हुए दाने को अगौछा में गाँठि कर और बिटिया को गोद में लेकर घर की राह लिया बिना कुछ कहे।
  ज़मींदार की बहू बड़ी सहृदय भद्र महिला थी ये सारा प्रकरण उनके सामने ही हुआ था। इधर जैसे ही भगेलू की बहू अपने कच्चे घर का किवाड़ खोल रही थी कि तभी माल्किन की आवाज़ सुनी जो खाना लेकर आइ हुई थी ।वे खाना देकर जा चुकी थी, सरपुतिया पूड़ी सब्ज़ी खा रही थी और उसे देखकर दोनों मन ही मन माल्किन को अशीश रहे थे। मज़दूर का मन निर्मल होता है।
राजन शर्मा 
दिल्ली
और नया पुराने

Ads

📺 KMB LIVE TV

Ads by Eonads

نموذج الاتصال