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सबने दिखाए सपने फिर भी गांव मूलभूत सुविधाओं से दूर है बरगी बांध का डूब क्षेत्र

सबने दिखाए सपने फिर भी गांव मूलभूत सुविधाओं से दूर है बरगी बांध का डूब क्षेत्र 

केएमबी नीरज डेहरिया

सिवनी। जिले के घंसौर विकास खण्ड के बरगी बांध डूब क्षेत्र के बीजासेन, गाड़ाघाट, करहैया, अनकवाडा, हिनाई सहित दर्जनों गांवों की दयनीय और दर्दभरी दांस्ता बयां करती यह रिपोर्ट। बरगी बांध बनने के पहले एक समय था जब अच्छे से जीवनयापन हो जाता था लेकिन बांध बनने के बाद मानो विस्थापितों के ऊपर दुख का पहाड़ सा टूट गया, अस्सी के दशक में बीजासेन एक बड़ा मार्केट था बड़े पैमाने में व्यपारी रहते थे, हंसते खेलते जीवन में ग्रहण लग गया, बरगी परियोजना में अपना सब कुछ निछावर करने वाले आज दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। हमारे गांव भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, ऐसा लगभग हर राजनीतिक दल की जनसभाओं में बड़े-बड़े नेता दावा करते हैं। इन गांवों के विकास को तमाम बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। ग्रामीणों को विकास के सपने दिखाने के लिए योजनाओ का खाका खींचा गया, लेकिन इस सबके बाद भी गावं-गांव ही रह गये और मूलभूत समस्याओं से भरा पिटारा खाली न हो सका। घंसौर विकास खंड का एक ऐसा ही गांव है बीजासेन, जब दैनिक भास्कर जाकर देखा तो ग्रामीणों के अंदर वर्षों से छिपा विकास न होने का दर्द बाहर निकल आया। उन्हें आज भी विकास की संजीवनी की तलाश है। यहां की कहानी अनेक विषमताओं से घिरी है।
सियासत की भेंट चढ़ा विकास कार्य
गांव के पिछड़े होने का सबसे बडा कारण सियासत के अलग- अलग फंडों में उलझना ही है। शायद यही कारण है कि आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद भी इस गांव में न तो सही ढंग से बिजली आती है और न ही बेहतर सड़के हैं। आधा दर्जन हैंडपंप लगे होने के बाद भी शुद्ध पानी के लिए ग्रामीणों की जंग जारी है तो दस से बीस फीसदी ही शिक्षा है ,गांव की 70 फीसदी जनता खुले आसमान के नीचे शौच करती हैं। आर्थिक रूप से मजदूरी पर निर्भर रहने के कारण मजदूरी करके काम चलाते हैं। ग्रामीणों को चिकित्सा और ब्लॉक संबंधित समस्याओं के निदान के लिए 32 किमी। दूर घंसौर जाना पड़ता है। गांव के गरीब पात्र लोग आवास के लिए अभी भी तरस रहे हैं।
ग्रामीणों का दर्द उनकी जुबानी
जब हमारे ग्रामीणों से बात की तो समस्याओं का पिटारा खुल गया, बीजासेन के नागरिकों में श्याम लाल बर्मन, तीरथ झारिया, राजकुमार बर्मन, , करहैया गांव के गणेश यादव, अनकवाडा गांव से धर्म सिंह आदि ने बताया कि विकास की दृष्टि से गांव बहुत पिछड़ा है। इसलिए यहां आज तक कोई सांसद नहीं आया। विधायक गण तो आते रहे और मौजूदा कांग्रेस विधायक भी चुनाव के बाद एक दो बार गांव आये लेकिन सांसद महोदय कई वर्षों से नही आए। गांव में पंचायत भवन, बारातशाला, खेल का मैदान की मांग कभी नहीं पूरी हुयी। आवास, , पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए ग्रामीण तरसते ही रहते हैं।
बिजली की आंख मिचौली, वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं
बिजली की आंख मिचौली के कारण सप्ताह में मुश्किल से पांच दिन ही लाईट आती है। गांव के गलियारों की रोशनी के लिए पूर्व में पंचायत स्तर से तीन सौर ऊर्जा लाइट दी थी, इनमें से एक भी नहीं जल रही हैं। लाईट की आंख मिचौली के ग्रामीण लालटेन और मोमबत्ती के सहारे ही जीवन यापन करते हैं बरगी बांध से विस्थापितों के आन्दोलन के चलते 30 वर्ष पहले पहुंची लाइन अब जीर्ण शीर्ण अवस्था में है खंम्बे भी जर्जर हो चुके हैं।अब राशन दुकान से भी केरोसिन नहीं मिलता है।
आवास से लेकर महिला स्वास्थ्य तक की चिंता
विकास के लिए जहां ग्रामीण संघर्ष कर रहे हैं तो गांव के विकलांग महेंद्र बर्मन पात्रता रखने के बावजूद आवास के लिए तरस रहे हैं। यद्यपि इन्हें पेंशन तो मिलती है, लेकिन जीविका चलाने के लिए काफी नहीं है। दूसरी ओर महिलाओं में, गुड्डी बर्मन, सिमोनिया झारिया ने बताया कि उन सभी के इलाज के लिए एनम सेंटर तक उपलब्ध नहीं है। पिछले दो-तीन वर्ष से बीजासेन में एएनएम का पद रिक्त हैं, उप स्वास्थ्य केंद्र तो बनकर तैयार है लेकिन फीता कटने का इंतजार पिछले कई महीनों से कर रहा है, संबंधित विभाग को ग्रामीणो द्वारा अवगत करा दिया गया है लेकिन स्वास्थ्य विभाग आंखें मूंदे बैठा हुआ है, साथ ही महिलाओं ने बताया कि वह सब भी कुछ करना चाहती हैं, लेकिन उनके सामने अवसर उपलब्ध नहीं कराये गये।
रोजगार के अवसर भी न के बराबर
महिलाओं ने बताया कि  वह सब मनरेगा से जुड़ी हैं, लेकिन अब वहां भी काम नहीं है क्षेत्र से महिलाएं बड़ी संख्या में अपने छोटे छोटे बच्चों को लेकर नागपुर और जबलपुर की ओर पलायन करती हैं। महिला सशक्तिकरण की बातें सरकार से खुब होती हैं पर हम महिलाओं में स्वरोजगार के लिए योजना की चाहत होते हुए भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। मनरेगा में 100 का कार्य नहीं मिल पाता रोजगार का कोई विकल्प नहीं है, इसलिए ग्रामीणों की मांग है कि डूब क्षेत्र के इन गांवों की स्थिति को देखते हुए मनरेगा से 200दिवस कार्य और हर यूनिट में दस किलो खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाये।
विकास की सही सोच की जरुरत
गांव के श्याम लाल बर्मन से पूछा गया कि आखिरकार गांवों को सुधारने के लिए वह क्या उम्मीदें करते हैं तो उन्होंने बताया कि योजनाओं का सही क्रियान्वयन ही विकास को गति प्रदान कर सकता है। लिहाजा सुधार करके विकास का खाका खींचना चाहिए तभी गांवों को उनका हक मिल सकेगा। दूसरी भुवन बर्मन ओर सूरज बर्मन ने बताया कि ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत, विधायक, सांसद, निधियों सहित आधा सैकड़ा योजनाएं होने के बाद भी आज तक गांव के विकास का सही खाका न खींच पाना ग्रामीणों के लिए विडंबना की बात है। इससे लगता है कि तंत्र अभी भी बेईमान है।
विकास से कोसों दूर हैं ग्राम पंचायत बीजासेन गांव के लोग
आजादी के बाद आज तक आधारभूत ढांचा तक खड़ा नहीं हो सका और मूलभूत सुविधाओं के लिए ही ग्रामीण तरसते रहते हैं दर्जनों गांव विस्थापन का दंश झेल रहे हैं।ग्रामीणों ने बताया कि सरकार ने हमारी जीते जी हमारी कब्र खोद दी बरगी परियोजना में हमें राजा से रंक बना दिया गया। ग्रामों में वर्षों पहले पानी की व्यवस्था के लिए जो हैडपंप लगाए गए थे बस वही नजर आते  हैं और प्यास बुझाने के लिए लोगों को हैंडपंप से गंदगीयुक्त पानी से अपनी प्यास बुझानी पड़ती है। आंगनबाड़ी और स्कूल को जिस हैंडपंप से पानी बोरिंग के द्वारा दिया जाता है, ताज्जुब की बात यह है कि उस हैंडपंप का पानी  खुद मुहल्ले वाले पीने के लिए इस्तेमाल नहीं करते।ग्राम की आबादी लगभग पांच सौ वोटर की है लेकिन विकास से दूर रहने के चलते इनका जीवन यापन आज भी पुराने जमाना जैसा है यहां के लोग तेंदूपत्ता, मनरेगा, लकड़ी बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन है, वही वर्षो से चल रही आवास योजना के बाद भी यहां के लोगों के मकान कच्चे व पत्थरों के हैं पहाड़ी क्षेत्र में खेती का किसान सोचते भी है तो पानी की समस्या के चलते विचार त्याग देते हैं इसके अलावा वन भूमि में और आबादी की भूमि में काबिज दावेदार को पट्टे नहीं मिल रहें हैं,, हम किसान विरोधी नहीं किसानों को बारह हजार रुपए वर्ष में मिलते हैं, लेकिन गरीब भूमिहीन ठलुआ कुछ नहीं मिलता केन्द्र या फिर मध्यप्रदेश सरकार को छत्तीसगढ़ सरकार तर्ज पर भूमिहीन मजदूर न्याय योजना का शुभारंभ करना चाहिए, गरीब भूमिहीन परिवारों को कुछ मदद मिल सके, छत्तीसगढ़ में भूमिहीन परिवारों को 6000 रुपए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
शासन से आस हुई बेमानी
ऐसा नहीं है कि शासन-प्रशासन से ग्रामीणों ने व्यवस्था और सुविधा की आस ना लगाई हो लेकिन पिछड़े जाने वाले इस ग्राम में किसी ने पिछड़ापन दूर करना जरूरी नहीं समझा। अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के में असमर्थ हैं, बेरोजगारी के कारण जो मुश्किल भरा होता है।  इन व्यवस्थाओं के चलते हाल यह है कि इस गांव में ना तो कोई अधिकारी पहुंचता है और ना ही कोई जनप्रतिनिधि ,जिससे ग्रामीण विकास के हालत समझे जा सकते हैं।भुवन, बर्मन, तीरथ झारिया, दीपक झारिया, शालिकराम उईके, आदि ने बताया कि जनप्रतिनिधि एवं अधिकारियों से मुलाकात कर समस्याओं से अवगत कराया लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।
शिक्षा के लिए भी संघर्ष
इन अपेक्षाओं का दंश नैनीहालों को भी भुगतना पड़ रहा है जो पढ़ना चाहते हैं दरसल शिक्षा के नाम पर बीजासेन सहित आस-पास के आधा दर्जन गांवों में महज पांचवी से आठवीं तक स्कूल है। क्षेत्र का एकमात्र माध्यमिक शाला बीजासेन है जो सबसे पुराना है,1913 में प्राथमिक शाला की नींव रखी गई,1973 माध्यमिक शाला उसके बाद आज तक स्कूल का उन्नयन नहीं हुआ,ऐसे में इन बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा तो मिल जाती है लेकिन बीजासेन, करहैया अनकवाडा के बच्चों को आठवीं के बाद आना जाना  जाना 44 किलोमीटर तय करते हैं तब जाकर गोरखपुर में हाई सेकेंडरी स्कूल की शिक्षा नसीब होती है ग्रामों के बच्चों को एक जैसी समस्या होती है कि आगे कहां और कैसे पढ़ें, बरगी बांध डूब क्षेत्र के बीजासेन गांव सहित आधा दर्जन गांवों में शिक्षा का स्तर जीरो है।
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