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कैलाश (मोबुदा) नर्सिंग होम बना लूटपाट केन्द्र, मरीजों से कर रहे मनमानी वसूली

कैलाश (मोबुदा) नर्सिंग होम बना लूटपाट केन्द्र, मरीजों से कर रहे मनमानी वसूली

केएमबी ब्यूरो रानू शुक्ला


बांदा। बांदा जनपद में बहुत से नर्सिंग होम संचालक भोली-भाली जनता के साथ आर्थिक एवं मानसिक शोषण कर रहे हैं, वहीं इन्दिरा नगर गेट -1 में स्थित कैलाश (मोबुदा) नर्सिंग होम है जहां मरीजों के साथ जमकर आर्थिक शोषण किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह से मौन है।ऐसे नर्सिंग होम पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, नर्सिंग होम पर बैठने वाले डाक्टर अपने ही मेडिकल से दवा लेने और जांच करवाने के लिए बाध्य करते हैं। यदि मरीज कहीं दूसरी जगह से जांच करवाकर आ जाता है तो उसको रिजेक्ट कर देते हैं, यहां के डाक्टर ये भी कहते है कि ये दूसरे जगह कि रिपोर्ट पूरी तरह ग़लत है,हम जहां कहते हैं वहीं जांच करवाओ तब रिपोर्ट सही आएगी फिर ईलाज होगा। सूत्रों से ये भी जानकारी मिली है कि मेडिकल कॉलेज में आए हुए मरीजों को अपने नर्सिंग होम आने को प्रेरित करते हैं ।जहां उनका 50-80 प्रतिशत कमीशन मिलता है वहीं बुलाते हैं, भर्ती करते हैं। कैलाश नर्सिंग होम में बैठने वाले डाक्‍टर अपने ही मेडिकल से ही दवा लेने एवं जांच करवाने को बाध्य करते हैं जिससे उनको 80% तक कमीशन मिल सके। नर्सिंग होम संचालक अपने मेडिकल से इन दवाओं का मनमाना मूल्‍य वसूलते हैं। और लिखने वाले डाक्टर को इनका 80 फीसद तक कमीशन होता है। जनरल बेड चार्ज 1200 रुपए और प्राइवेट बेड चार्ज लगभग 3000 रुपए लेते हैं। इसमें भी डाक्टर का कमीशन होता है।जनरल बेड में एक बेड से दूसरे बेड की दूरी एक फिट भी नहीं होती, मरीजों के वायरस एक दूसरे के पास आराम से जाते हैं। और साथ ही यहां मच्छरों का भी आतंक दिन रात बराबर देखने को मिलता है। जनरल वार्ड में मरीज स्वयं अपनी ब्यवस्था करता है। इतना ही नहीं यहां बैठने वाले डाक्टर अपना चार्ज डेली का 500 रूपए अलग से लेते हैं। जहां डाक्टर को लोग भगवान का दर्जा देते हैं वहीं इस नर्सिंग होम के डाक्टर लूटेरे बने हुए हैं। जहां डेंगू के मरीज भी भर्ती किए हैं वहां भी मच्छरों के लिए नर्सिंग होम द्वारा कोई ब्यवस्था नहीं करवाई जाती। 
दवा से कमाई के खेल में मरीजों का हित ज्यादातर डाक्टर लोग नहीं सोच रहे हैं। हजारों ऐसे ब्रांड की दवाएं बन गई हैं जो चुनिंदा नर्सिंग होम या क्लीनिक में ही मिलेंगी। कई डाक्टर जेनरिक नाम से दवा लिखते हैं। यानी दवा का मालीक्यूल डाक्टर अपने पर्चे पर लिखते हैं। इसे ऐसे समझें- बुखार की दवा कैलपाल का मालीक्यूल पैरासीटामाल है। डाक्टर यदि पैरासीटामाल नाम से दवा लिखें तो मरीज स्वतंत्र होगा कि वह उस कंपनी की पैरासीटामाल खरीदे जिसका रेट सबसे कम हो। लेकिन कमाई के चक्कर में खुद से तय ब्रांड वाली दवाएं ज्यादा लिखी जाती हैं।यदि मरीज ने कम रुपये होने का हवाला देकर दवा दूसरे मेडिकल से खरीदने की बात कह दी तो उसे बताया जाता है कि दवा बदलोगे तो काम नहीं करेगी। जिस कंपनी और नाम की दवा लिखी है वही खरीदना, क्यों कि दवाओं में डाक्टर को 80%तक कमीशन मिलता है। मरीज को बाद में पता चलता है कि पर्चे पर लिखी गई दवा सिर्फ वहीं मिलेगी जहां से उसने खरीदी थी। शासन और प्रशासन को ऐसे नर्सिंग होम और क्लीनिकों की जांच करवाकर सख्त से कार्यवाही करना चाहिए जिससे भोली-भाली जनता का शोषण न हो सके।
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